Wednesday, February 8, 2017

एपिसोड-60 👦🏻 “अभी मैं छोटा हूँ”

मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण
एपिसोड-60

आज की कहानी का शीर्षक- “अभी मैं छोटा हूँ”
       मीना राजू से गाने की तैयारी करने को कहती है क्योकि उनके स्कूल में शुक्रवार को शिक्षा अधिकारी आने वाले है जिसमे मीना और पासा भईया एक युगल गीत (हम होंगे कामयाब.....) प्रस्तुत करना है।दीपू मीना को बताता है कि पाशा भईया ने सुनील के यहाँ गीत गाने को मना कर दिया है।
यहाँ पाशा अगले दो दिन स्कूल भी न आता जिससे मीना और परेशान हो जाती है तब मीना और उसके साथी पाशा से मिलने उसके घर जाने को सोचते है पर मुरली उन्हें जाने से मना करता है और बताता है कि वो किसी से न मिलेगा। मीना जब न मिलने का कारण पूंछती है तो वो ये कह कर बताने से मना कर देता है की ये हम लडको की बातें हैं जिन्हें हम अप लड़कियों या बच्चों को नहीं बता सकते।
       मना करने के बाद भी शाम को मीना पाशा के घर जाती है वहाँ मीना और उसके दोस्तों की मुलाकात पाशा की माँ से होती है। माँ बताती है कि पता न मीनाउसे क्या हो गया है वह कुछ दिनों से न तो किसी से बात करता है न ही घर से बहार निकलता हैहर वक्त बस गौशाला में छुपा रहता है। पाशा की माँ फिर कहती है कि अब तुम लोग ही समझा सकते हो शायद तुम लोगों के बुलाने से वो बाहर निकल आये।

   मीना और उसके साथी पाशा को पुकारते हैं पर पाशा कोई जवाब नहीं देता तब  मीना और उसके दोस्त सरपंच जी या पुलिस से मिलने की बात करते है तभी दरवाजे के पास से एक आवाज़ सुनाई पड़ती है देखने पर वहाँ पाशा चेहरे में बन्दर टोपी लगाये दिखते है। गर्मी के दिनों पाशा के सर में बन्दर टोपी देख बच्चे इसका कारण पूंछते है तो पाशा बताने से मना कर देता है पर बहुत कहने पर पाशा अपना चेहरा सिर्फ राजू को दिखाने को राजी होता है। राजू जैसे ही पाशा के चेहरे को देखता है राजू डर जाता है और कहता है ये आपको क्या हो गया है। फिर दीपू मीना को बताता है कि पता न पाशा भैया को क्या हो गया है?
(जो राजू ने देखा वो मीना को बताता है पर इस समस्या का हल उनमें से किसी के पास न है)
        अगली सुबह इस समस्या के हल के लिए बहनजी के पास पहुँच जाते है और तब राजू टीचर बहनजी से बताता है की पाशा भईया लगता है भालू बन्ने वाले है, उनके चेहरे में थोड़े थोड़े बाल उग आये है और दाने भी हो गए हैं,लगता है उसे कोई खतरनाक बीमारी हो गई है।
टीचर जी कहती है कि बच्चो आप लोग परेशान मत हो मैं पाशा से खुद बात करुँगी।
और फिर बहनजी कुछ बच्चो के साथ पाशा के घर पहुँचती हैं और वहाँ पाशा की माँ से पूंछती हैं तब पाशा की माँ कहती हैं कि क्या बताऊँ टीचर जी अब वह बड़ा हो रहा है इसलिए उसके चेहरे में बाल आ रहे हैं और मुहासे भी हो रहें हैं। इसी कारन से वह दो दिनों से गौशाला में छुपा बैठा है।
   बहनजी पाशा को उसकी पसंद की खीर खाने के बहाने से बुलाती हैं कुछ न नुकर के बाद बहन जी के के कहने पर पाशा बहार आ जाता है। बहनजी पाशा को समझाते हुए कहती हैं कि मुझे मालूम है की तुम्हे क्या हुआ है और इस पर तुम्हे परेशां होने की आवश्यकता भी न है क्योकि जब हम बड़े होते है तब हमारे शरीर में कुछ बदलाव अवश्य होते है,जैसे चेहरे में बाल आनामुहासे निकलना और आवाज़ में भारीपन ....ये सब बढे होने की निशानियाँ हैं। तुमने अपने पिताजी,माधव काका,सरपंच जी इन सबको देखा होगा कि इनके भी डाढ़ी मूंछे और आवाजें भी भारी हैं।
बहनजी के समझाने पर पाशा समझ जाता है और अगले दिन से स्कूल आने लगता है। और अपना युगल गीत भी तैयार करता है।
आज का गाना:-
समय कभी न एक सा भईया,
समय बदलता जाए रे भईया।-4
बचपन बीते आए ज़वानी,
चाल में मस्ती बोली निराली,
कल है अपना जोश नया है,
बाजू बल और कद भी बड़ा है,
घबराओ न समय को समझो
समय बदलता जाये रे भईया
समय कभी न एक सा...............
गुजरे वक्त तो फ़िक्र न करना,
हर दिन है एक नया तराना,
खुल्ली बातें तुम अपनाओ
वक्त का पहिया रुकता न भईया
बक्त बदलता जाये रे भईया
समाय कभी न एक सा...
आज का खेल:- ‘कड़ियाँ जोड़ पहेली तोड़’
मीठी थी आवाज़ उसकी तेज़ था दिमाग।
भारत की कोकिला कहकर करते थे उसको याद।
स्वतंत्रता सेनानी थी वो,गाँधी जी की सिपाही थी वो।
उत्तर- सरोजनी नायडू   (भारत की पहली महिला राज्यपाल)
आज की कहानी का सन्देश-
 ‘बचपन से जवानी तक में,
बालकों में होते शारीरिक परिवर्तन।
चेहरे पर दाने और बाल आना,
आवाज़ में भी आता भारीपन |’

    अपने अन्दर शारीरिक या मानसिक बदलाओं से घबराएँ न इसके बजाये अपनी समस्याओं से अपने दोस्तों या बड़ों से साझा करें।

एपिसोड-59 अख़बार से क्या सीखा

एपिसोड-59 - कहानी का शीर्षक-‘अखबार से क्या सीखा?’

ज़ोर लगा के हईया, दम लगाओ भईया।
ज़ोर लगा के हईया, दम लगाओ भईया।

यह था परिणाम कल रात गाँव में आए तूफ़ान का। मीना के स्कूल की छत, पेड़ गिरने से टूट गई थी और गाँव
के कुछ लोग उस पेड़ को हटाने में लगे थे। सभी बच्चे अपने बस्ते टाँगे  स्कूल के इर्द-गिर्द खड़े थे, इस उम्मीद
में कि शायद आज पढ़ाई न हो।

पर तभी बहनजी ने आकर यह घोषित किया कि जब तक स्कूल की छत के ऊपर से पेड़ नहीं हटता और छत
की मरम्मत नहीं होती तब तक पढ़ाई बाहर ही होगी, हरी-भरी घास पर, पेड़ों के बीच।

”बिना चॉक और ब्लैकबोर्ड के?“ दीपू ने हैरानी से पूछा।
”बिल्कुल! आज हम नए तरीके से पढ़ेंगे!“ बहनजी ने यह कहा और अपनी किताबों के बीच से एक अख़बार निकाला।“

”अख़बार? पर बहनजी अख़बार में तो देष-विदेष की ख़बरें होती हैं ... फिर भला हम उन ख़बरों से क्या सीखेंगे?“ रानो ने असमंजस से पूछा।

”देखते जाओ बच्चों! दुनिया में ऐसी कोई चीज़ नहीं है जिससे हमें कोई सीख न मिले। तो चलें, सीखें कुछ नया? 

तुम सब तीन समूह बना लो, मैं हर एक समूह को अख़बार का एक पन्ना दूँगी। हर समूह का एक बच्चा अपने पन्ने से कोई एक ख़बर ज़ोर से पढ़कर सुनाएगा ...ठीक है?“ बहनजी बोली।

”ठीक है बहनजी!“ सभी बच्चों ने एक स्वर में कहा।


पहले बारी थी मीना के समूह की, जिसमें से दीपू ने आकर यह ख़बर पढ़ी -

कल खादरपुर के दो व्यक्तियों की पुरानी दवाई के सेवन से मौत हो गई। खादरपुर के पुलिस अधिकारी ने
बताया कि कुछ असामाजिक तत्व गैर-कानूनी रूप से इन पुरानी दवाइयों को बेच रहे हैं। सामान्यतः हर दवाई
कुछ समय के लिए ही असरदार होती है, लेकिन उस समय के बाद, उस दवाई का असर ख़त्म हो जाता है या
वो ख़तरनाक साबित हो सकती है। दवाई की यह अंतिम तारीख़ हर दवाई पर ज़रूर लिखी होती है ....

इस ख़बर के पढ़े जाने के बाद बहनजी ने बच्चों से पूछा कि इस ख़बर से उन्हें क्या सीखने को मिलता है।
”हमें दवाइयाँ सिर्फ़ डॉक्टर से या फिर दवा की दुकान से ही खरीदनी चाहिए,“ मीना ने कहा।

रानो ने कहा, ”इस ख़बर से हमने यह भी सीखा कि मिलावटी, नकली और पुरानी दवाइयाँ बेचना ना सिर्फ़ गैर-कानूनी है बल्कि एक पाप भी है क्योंकि इससे कई निर्दोष लोगों की जान भी जा सकती है ...

“ और हमने यह भी सीखा कि दवा खरीदने से पहले हमें उस पर छपी अंतिम तारीख़ पढ़नी चाहिए ... और
अगर वह अंतिम तारीख़ बीत चुकी हो तो फिर उसे नहीं खरीदना चाहिए ...“ दीपू ने कहा।

”शाबाश बच्चों! चलो अब दूसरे समूह की बारी है,“ बहनजी बोलीं।

दूसरे समूह से सुनील ने यह ख़बर पढ़ी -
मुंबई  के वानखेड़े  स्टेडियम में कल श्रीलंका के साथ दूसरा एक-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच भी भारत
ने 60 रनों से जीत लिया ... लेकिन भारत के मास्टर बल्लेबाज़ सचिन तेदुंलकर सिर्फ़ 5 रनों से अपना 44वां शतक लगाने से चूक गए ... सचिन 95 के स्कोर पे रनऑउट हो गए ... दूसरी छोर पर खड़े बल्लेबाज़ हरभजन सिंहसचिन की तरफ़ बिना देखे ही रन लेने के लिए दौड़ पड़े .... और इस प्रकार सचिन अपना विकेट गंवा बैठे। 

बहनजी ने अब इस समूह के बच्चों से पूछा कि हमें इस ख़बर से क्या सीख मिलती है?
सुमी ने कहा, ”हरभजन सिंह को दौड़ने से पहले यह देखना चाहिए था कि सचिन भी रन लेना चाहते हैं या नहीं! जब हम एक टीम बना के कोई खेल खेलते हैं तो उस खेल के नियमों के साथ-साथ हमें अपनी टीम के खिलाड़ियों के बारे में भी सोचना चाहिए।“

अब बारी थी तीसरे और आख़िरी समूह की। पर उनके पन्नों में तो सिर्फ़ विज्ञापन ही विज्ञापन थे। तभी बहनजी ने कहा कि विज्ञापनों से भी हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है, बताओ क्या?

सुनील बोला, ”आप बिल्कुल ठीक कह रही हो बहनजी ... मैने एक बार षहर के अख़बार में बहुत से होटलों के
विज्ञापन देखे थे ... हर होटल को एक-ना-एक रसोईया चाहिए था .... मैंने तो सोच भी लिया है कि बड़ा हो कर
मैं किसी बड़े से होटल में एक बड़ा मशहूर रसोईया बनूँगा .... और जब आप मेरे होटल में आओगी तो मैं आपको आलू के परांठे खिलाऊँगा!“

यह सुन बहनजी और सभी बच्चे खिलखिलाकर हँसने लगे।

”देखा बच्चों, सिर्फ़ एक विज्ञापन पढ़ने से सुनील ने आज ही निशचय कर लिया कि वह बड़ा हो कर क्या
बनेगा!“ बहनजी बोली।

मीना ने कहा कि उसने एक विज्ञापन में यह भी पढ़ा था कि यदि हम पानी या बिजली विभाग की सेवाओं से
संतुष्ट नहीं हैं तो हम उन्हें फ़ोन करके अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।

तो इस तरह मीना और उसके दोस्तों ने अख़बार से बहुत कुछ सीखा। और यह भी सीखा कि चाहे कोई भी मुष्किल क्यों न आ जाए, हमें उससे घबरा कर अपना काम नहीं रोकना चाहिए।


आज का गीत-
आज कापी नहीं तो क्या,
आज पेंसिल नहीं तो क्या। 
आसपास की चीजों से ,
हम सीखेंगे कुछ नया-नया। 
......................................


आज का खेल- ‘कड़ियाँ जोड़ पहेली तोड़’


सुबह तो सबके घर पर आये, 
हर एक हाथ में नज़र ये आये। 
गिरता आकर दरवाजे पर,
अपने अन्दर दुनियां छिपाए।

उत्तर-‘अखबार’

एपिसोड-58 🎼 “सुर लगाओ”

मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण
एपिसोड-58

आज की कहानी का शीर्षक- “सुर लगाओ”
    लाला जी- काम का न काज का दुश्मन अनाज का दो घंटे से कह रहा हूँ तेल के कनस्तर उठा कर इधर से उधर रख दे। सुनाई देता है तुझे या नहीं ठीक से?
सुन्दर- जा रहा हूँ लाला जी । बहुत भारी है अकेले नहीं हो रहा मुझसे।
लाला-अकेले खा तो लेता है न?
(दूकान पर सामान लेने आया एक आदमी)
आदमी-लाला जी ,.....बच्चा है, आराम से,....गधे का बोझ डालोगे तो कैसे......?
लाला -देखो जी तुम अपने काम से काम रखो अगर बहुत रहम आ रहा है तो गोद ले लो न?
आदमी- वैसे लाला जी ये लड़का आपके गोलू की ही उम्र का है ये छोरा कोई दसेक बरस का है
लाला-तुम फिर शुरु हो गए। शक्ल देखी है मेरे गोलू की एकदम राजकुमार लगता हैस्कूल जाता है,अव्वल नंबर लाता है ।इस भिखमंगे से मिला रहे हो।वो तो इसके माँ-बाप आ गए हाथ बांधे क़ि रख लो बच्चे को दुकान पर ।दो वक्त की रोटी मिल जाएँगी।एक तो काम दो ,ऊपर से लोगो के प्रवचन सुनो।
आदमी-बुरा मत मानना लालाजी 14 साल से कम उम्र के बच्चे से काम करवाना जुर्म है जेल भी हो सकती है।
      तभी मीना और गोलू दोनों लाला जी की दुकान पर पहुंचते हैं,............दोनों लालाजी को से नमस्ते करते है
लाला- नमस्ते, हो गयी आज की पढ़ाई?
गोलू- आज मास्टर जी ने 12 का पहाड़ा सिखाया ।
लाला सुन्दर को डाटता है, ‘.....क्या देख रहा है, कुछ काम नहीं है क्या?
       मीना के समझाने पर लाला उसे झड़प देता है।


अगली सुबह जब गोलू मीना से मिला ....
गोलू- सुन्दर को पिताजी जब डाँटते है मुझे बिल्कुब अच्छा नहीं लगता।
मीना- हाँ गोलू। इस तरह की डांट फटकार बिल्कुब ठीक नहीं ।
गोलू- पर क्या करें?
मीना-वैसे मैंने उस दिन एक आदमी को कहते सुना था क़ि 14 साल से कम उम्र के बच्चे से काम करवाना जुर्म है जेल भी हो सकती है।
गोलू- नहीं नहीं ,मुझे अपने बाबूजी को जेल नहीं भिजवाना।
(मीना और गोलू लालाजी को चिरौंजी सेठ से बात करते सुना।)
लाला- अरे चिरोंजी तुम फिक्र मत करो लड़का भेजता हूँ तुमारा सारा सामान गाड़ी पर चढ़ा देगा।
चिरोंजी- आदमी मजबूत है नतुम्हारा ?
लाला- हाँ ,मजबूत हैनाम सुन्दर है उसका,कल रविवार है सुबह- सुबह पहुंच जायेगा।
मीना- लो सुन्दर पर एक और मुसीबत आने वाली है।
गोलू- तो अब क्या करे मीना?
मीना- अब तो कुछ करना पड़ेगा।
(अगले दिन चिरोंजी की दुकान पर चावल की बोरिया गाड़ी पर लादी जा रही थी)
चिरोंजी- अरे संभल के लड़के ।बोरिया गिर गयी तो फट जाएँगी और चावल जमींन पर गिर जायेंगे।
लाला- अरे चिरोंजी हो गया सारा काम?
चिरोंजी- कहाँ हुआ काम ये किस बच्चे को भेज दिया।
बोरे उठाये दम निकल रहा है इसका।
लाला - क्यों सुन्दर?
(लाला घबराते हुए कहता है कि चिरोंजी ये तुमने किस को काम पर लगा लिया।)
चिरोंजी- क्यों तुमने ही तो भेजा था इसे?
लाला- ये सुन्दर थोड़ी ही है ये मेरा बेटा गोलू है। वजन उठा के कैसा मुह निकल आया है छोरे का?हाय! अभी हड्डी टूट जाती तो?

चिरोंजी- पर इसने तो अपना नाम सुन्दर ही बताया था। और न ही मैं सुन्दर को जानता हूँ और न ही तुमरे बेटे गोलू को।
चिरोंजी- अगर लड़का तुम्हारे लडके गोलू की उम्र का है तो उसे स्कूल जाना चाहिए । काम करने की उम्र नहीं है उसकी।
गोलू- हमें माफ़ करना पिताजी ये सब मैंने और मीना ने मिलकर किया था।
सरपंच-लाला जी सच तो ये भी है 14 साल के कम उम्र के बच्चे से काम कराना गैरकानूनी है।
लाला- हाँ सरपंच जी । अपने दुख से जानी ये पराये मन की पीड़। गोलू को तकलीफ में देखकर सब समझ गया मैं। सुन्दर को कल से ही स्कूल भेजता हूँ। सभी हँसते है।
आज का गाना-

खिलती हंसी मन में बसी
गीत गुन गुन गाए रे
पवन बहे मन ये कहे
बचपन कभी न जाये रे।
...........................

आज का खेल-  ‘बूझो और ढूंढो’
1.बरेली, बिलासपुर, कानपूर, रायपुर
कौन सा शहर बीच में छिपा है।
उत्तर- रायपुर
2.जयपुर, नागपुर, दिसपुर, कोलकाता
कौन सा शहर बीच में छिपा है।
उत्तर- नागपुर।

आज की कहनी का सन्देश-
“सन्देश-14 साल तक के बच्चे से कम कराना बाल अपराध।
पढ़ा लिखा कर में उनको करो देश और शिक्षा का सम्मान”

एपिसोड-57 😴 “कुंभकरण”

57- आज की कहानी का शीर्षक –कुंभकरण

मीना की सहेली बेला के घर दावत होने वाली है। मीना भी बेला के घर के पास है।

मीना- बेला दीदी आपका घर तो नया-नया सा लग रहा है। 
बेला- हाँ मीना, हमने अभी-अभी घर की मरम्मत करवायी है। 

बेला के पिताजी पोंगाराम, मीना को कल की दावत देते हैं। 
(मीना के दावत का कारण पूँछने पर)
पोंगा चाचा- इसके दो कारण हैं,  एक- हमारे घर की मरम्मत पूरी हो गयी है । दूसरा- मेरा पेट भी आज कुछ दिनों के बाद सही है। 
(हा!हा!हा!)

तभी बेला की माँ पोंगा चाचा को टूटी खिड़की की मरम्मत के लिए अन्दर से आवाज़ देती हैं। 

और अगले दिन........

मीना- वाह! बेला दीदी कितनी अच्छी खुशबू आ रही है। 
बेला- हाँ मीना! माँ रसोई में पकवान बना रही हैं। 

(मीना पकवानों की खुशबू का पीछा करते हुए रसोई तक पहुँच जाती है)
मीना यह देख कर हैरान होती है की पकवानों पर बहुत सारी मख्खियाँ भिनभिना रही हैं। बेला की माँ बताती हैं की मख्खियाँ टूटी हुई खिड़की से अन्दर आ रही हैं...मीना खिड़की से देखती है कि खुले नाले और शौच पर बैठने वाली मख्खियाँ खाने पर बैठ गयी हैं। 

(इधर मेहमानों की आमद बढ़ जाती है) 
मीना यह सब बात खान चाची को बताती है, ..और बेला की माँ परेशान है कि मेहमान अब क्या खायेंगे। खान चाची बेला की माँ से पकवान बाहर मेहमानों के पास भिजवाने को कहती हैं।



पोंगा चाचा –लो भाई भोलाराम....
भोलाराम- नहीं पोंगाराम भाई....समोंसों पर तो मख्खियाँ बैठी हैं। 
पोंगा चाचा- (राजू से) लो राजू । 
राजू- नहीं!

इस तरह सभी मेहमान खाने की मना कर देते है...खान दीदी पोंगाराम को समझाती हैं कि शौच पर बैठने वाली मख्खियाँ कीटाणु फैलाती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देते और यह हमें बीमार बना देते हैं। 

पोंगाराम को बात समझ आ जाती है और वो खिड़की ठीक करवाने को कहते हैं साथ ही सरपंच जी से कहकर खुला नाला भी बंद करवाने की कहते हैं। खान चाची द्वारा लायी गयीं मिठाइयाँ मेहमानों में बाँट दी जाती हैं। और पोंगा चाचा खिड़की ठीक कराने के बाद दुबारा दावत का वादा देकर मेहमानों को विदा करते हैं।



आज का गीत –

नहीं-२, नहीं-२, नहीं-२,  कभी नहीं। 
घर जैसा सुन्दर गाँव मेरा जी
गन्दा न करना इसे जरा भी
जो न रखेगा साफ इसे
नहीं करेंगे माफ उसे । । 



आज का खेल- ‘अक्षरों की अन्त्याक्षरी’

शब्द- सफाई

स-  साग
फ- फुर्ती
ई-  ईख

एपिसोड-56 ⛓ “मीना और रस्सा कस्सी”

मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण
                           एपिसोड-56

कहानी का शीर्षक- “मीना और रस्सा कस्सी 
       मीना की दोस्त मिली के घर .......
मिली की माँ- आटा गूँथ दिया तूने?
मिली- हाँ माँ|
मिली की माँ- अरे! दीपक बेटा,आ गया खेल कर?
दीपक- हां अम्मा,आज तो खेल का मज़ा ही और अलग थामैंने इतनी रोज़ से रस्सी खींची....बस आखिर में ज़रा सी चुक हो गयी|
मिली-...और तुम हार गए दीपक भईया|
     माँ, मिली को दीपक के लिए दूध लाने को कहती है|
मिली- माँ मैं भी थोडा दूध ले लूँ|
“तुझे क्या जरूरत है दूध कीतू जानती है न दूध दीपक के लिए हैइतना खेल कूद ताकत लगती हैदूध दही ये नही खायेगा, तो कैसे करेगा इतनी मेहनत और फिर के काम-काज से ज्यादा तू करती भी क्या है?” माँ ने मिली को डपटते हुए कहा, “ जा जरा अपने बाबूजी के लिए एक बाल्टी पानी ले आ|
मिली की माँ- (दीपक से) चल दीपक बेटा खाना तैयार हो गयातेरी पसन्द की आलू की भुजिया बनाई है और दाल......अरे! इसमें तो छोंक ही नहीं लगी हैमिली....दाल में छोंक क्यों नही लगाया तूने?
मिली- माँ बस लगाने ही वाली थी,इतना काम था|.......दीपक भईया तुम बाल्टी अन्दर ले जाओ न, तब तक मैं दाल में छोंक लगा देती हूँ|

दीपक- मैं क्यों? ............मुझे तो अम्मा जल्दी से खाना खिला दो|
मिली-हाँ ...छोड़ दो भईयाआपसे तो शायद बाल्टी उठेगी भी नहीं|
        जोश में आकर ताकतवर दीपू ने हाँफते-हाँफते बाल्टी उठाई|   दीपक की ताकत की पोल खुली अगले दिन.....जब रस्सा-कस्सी के खेल में उसकी टीम बुरी तरह से हार गयीमीना और मिली उसी तरफ से गुजर रहे थे और वहीं रुक गए|
मिली- मीना,महेश भईया को थोड़ी और फुर्ती दिखानी चाहिए थीरस्सी को एक झटका देकर खींच लेते तो जीत जाते|
    तभी वहां मौजूद लड़के मिली को चिढाते है... “है दम तो उतर न मैदान में,अपने भाई ती तरफ सेलड़की होकर बड़ी-बड़ी बातें करती है|
“लड़की होकर....क्या मतलब? हम तुमसे कम नहीं हैं, सच में तुम्हें हरा सकते हैं| मीना बोल पड़ी|
मिली- मीना क्या बोल रही है? चल घर चलते हैं|
दीपक-तुम तो जाओये लड़के तो.....|
     लड़के फिर चिढ़ाते हैं, “क्यों दीपक? कमजोर भाई की कमजोर बहन|
मीना- मिली, दिखा दो इनकी ताकत|
मिली- अच्छा आओ देखते है कितना दम है तुम लोगों में, पकड़ो रस्सी|
       लड़कों ने मिली को चुनौती क्या दी, अपनी शामत ही बुला लीमिली ने ऐसी फुर्ती दिखाई कि लड़के धूल में लोटने लगेउनकी हार होने ही वाली थी कि तभी उधर से मिली के पिताजी आते हुए दिखेऔर मीना के मना करने के बाद भी मिली ने रस्सी छोड़ दीऔर घर चली गयी जिससे उसकी टीम हार गयी|
लड़के- देखो कैसे भागी मिली?
मीना- मिली भागी नहीं उसे जाना पड़ाशुक्र मनाओ,वरना तो तुम हार ही जाते|
      मीना, लड़कों को अगले दिन फिर एक बार रस्सा कस्सी के खेल के लिए चुनौती दे देती है और मिली को इसकी खबर भी नहींदीपक ने जब अम्मा को मिली की रस्सा-कसी वाली बात बताई तो वो बरस पड़ीं, “घर में इतना काम पड़ा है और तू लड़कों के साथ उछल-कूद कर रही है|...चल अब खाना खाने बैठ .............खाने में दाल चावल बनाये हैं,बैंगन का भरता,चौलाई का साग भी है उधर कटोरे में, दीपक की थाली में रख दे|
मिली- चौलाई तो मुझे भी बहुत पसन्द है अम्मा|
“चौलाई दीपक के लिए है तू मत लेना| अम्मा ने कहा|
       उधर मीना के घर सबमें खूब जोश है|
मीना की माँ- अरे! मीना, ठीक से खा, कल रस्सा-कसी का खेल है न तेरा,एक रोटी और लेठीक से खायेगी नहीं तो ताकत और फुर्ती कैसे आयेगी?
मीना- ...पर अगर मिली नही आयी तो हम जीत नही पायेंगे, बही ताकत है उसके हाथों में|
         और अगली सुबह.........मिली के न आने के कारण खेल शुरु नहीं होता हैमीना, दीपक को उसके घर भेजती हैदीपक भगा-भागा घर जाता हैऔर देखता है कि मिली घर के काम में लगी है|
दीपक- तू यहाँ भैंसों को चारा दे रही है उधर मैदान में मीना तेरा इन्तजार कर रही है|......तू नहीं गयी तो मीना की टीम हार जायेगी.....तू जा मैं भैसों को चारा देता हूँ|
      मिली पहुँच गयी मैदान में, खेल शुरु हुआखेल देखने के लिए काफी लोग आ गएगाँव के सरपंच जी भी|.....और मिली व मीना की टीम जीत गईसरपंच जी उसे शाबासी देते हैं और जीतने वाली टीम को इनाम भी|
      जब मिली और मीना मिली के घर पहुंची तो....
मिली की माँ- अरे! मिली, कहाँ चली गयीं थी तुम?
    मीना, मिली की माँ को सारी बात बताती चली जाती है|......इतना सुनकर माँ भी मिली को अपने पास बुलाकर प्यार करती है और कहती है, “मुझे अपनी बिटिया पर नाज़ है”

आज का गाना-
प्यार बराबर सबको करना, दीपू मुन्नी मिलकर हँसना|
दूर गगन में चाँद और तारे,बगिया में फूल के जोड़े|
भेद नहीं है इनमे कोई, पापा के प्यारे दोनों है|
मम्मी की गोदी में मुन्नी,कंधे झूले दीपू देखो|
दौड़ लगते सरपट दोनों,खाते-पीते जमकर दोनों|
घर और देश को आगे लाना,दीपू मुन्नी मिलकर हँसना|
दूर गगन में.....................................................|
गणित का हीरो दीपू अपना,डॉक्टर है मुन्नी को बनना|
कोई किसी से कम न पाता, बाँट लो सब कुछ आधा-आधा|
प्यार बराबर सबको करना, दीपू मुन्नी मिलकर हँसना|
दूर गगन में.....................................................|
आज का खेल-     ‘नाम अनेक अक्षर एक’
            अक्षर- ‘न’
  • व्यक्ति- नील आर्मस्ट्रांग
  • जगह- नागालैण्ड
  • जानवर- नाग
  • वस्तु-नीबू

आज की कहानी का सन्देश- बिटिया को बराबर प्यार ही नही,बराबर भोजन और खेल-कूद का मौका मिलना चाहिएलड़के और लड़की में भेद नहीं होना चाहिए|