57- आज की कहानी का शीर्षक –कुंभकरण
मीना की सहेली बेला के घर दावत होने वाली है। मीना भी बेला के घर के पास है।
मीना की सहेली बेला के घर दावत होने वाली है। मीना भी बेला के घर के पास है।
मीना- बेला दीदी आपका घर तो नया-नया सा लग रहा है।
बेला- हाँ मीना, हमने अभी-अभी घर की मरम्मत करवायी है।
बेला के पिताजी पोंगाराम, मीना को कल की दावत देते हैं।
(मीना के दावत का कारण पूँछने पर)
पोंगा चाचा- इसके दो कारण हैं, एक- हमारे घर की मरम्मत पूरी हो गयी है । दूसरा- मेरा पेट भी आज कुछ दिनों के बाद सही है।
(हा!हा!हा!)
तभी बेला की माँ पोंगा चाचा को टूटी खिड़की की मरम्मत के लिए अन्दर से आवाज़ देती हैं।
और अगले दिन........
मीना- वाह! बेला दीदी कितनी अच्छी खुशबू आ रही है।
बेला- हाँ मीना! माँ रसोई में पकवान बना रही हैं।
(मीना पकवानों की खुशबू का पीछा करते हुए रसोई तक पहुँच जाती है)
मीना यह देख कर हैरान होती है की पकवानों पर बहुत सारी मख्खियाँ भिनभिना रही हैं। बेला की माँ बताती हैं की मख्खियाँ टूटी हुई खिड़की से अन्दर आ रही हैं...मीना खिड़की से देखती है कि खुले नाले और शौच पर बैठने वाली मख्खियाँ खाने पर बैठ गयी हैं।
(इधर मेहमानों की आमद बढ़ जाती है)
मीना यह सब बात खान चाची को बताती है, ..और बेला की माँ परेशान है कि मेहमान अब क्या खायेंगे। खान चाची बेला की माँ से पकवान बाहर मेहमानों के पास भिजवाने को कहती हैं।
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पोंगा चाचा –लो भाई भोलाराम....
भोलाराम- नहीं पोंगाराम भाई....समोंसों पर तो मख्खियाँ बैठी हैं।
पोंगा चाचा- (राजू से) लो राजू ।
राजू- नहीं!
इस तरह सभी मेहमान खाने की मना कर देते है...खान दीदी पोंगाराम को समझाती हैं कि शौच पर बैठने वाली मख्खियाँ कीटाणु फैलाती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देते और यह हमें बीमार बना देते हैं।
पोंगाराम को बात समझ आ जाती है और वो खिड़की ठीक करवाने को कहते हैं साथ ही सरपंच जी से कहकर खुला नाला भी बंद करवाने की कहते हैं। खान चाची द्वारा लायी गयीं मिठाइयाँ मेहमानों में बाँट दी जाती हैं। और पोंगा चाचा खिड़की ठीक कराने के बाद दुबारा दावत का वादा देकर मेहमानों को विदा करते हैं।
आज का गीत –
नहीं-२, नहीं-२, नहीं-२, कभी नहीं।
घर जैसा सुन्दर गाँव मेरा जी
गन्दा न करना इसे जरा भी
जो न रखेगा साफ इसे
नहीं करेंगे माफ उसे । ।
आज का खेल- ‘अक्षरों की अन्त्याक्षरी’
शब्द- सफाई
स- साग
फ- फुर्ती
ई- ईख
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