मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण : मासिक रिपोर्ट (दिसम्बर' 2016)
Thursday, December 29, 2016
मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण : मासिक रिपोर्ट (नवम्बर' 2016)
मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण : मासिक रिपोर्ट (नवम्बर' 2016)
Saturday, December 24, 2016
एपिसोड-51 🗣 ‘पूरी बात’
मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण
एपिसोड- 51
आज की कहानी का शीर्षक- “पूरी बात”
सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली नीलम को उसके पिताजी ने स्कूल भेजना बंद कर दिया है। उनका कहना है की वह घर रह कर अपनी माँ का घर के काम में हाथ बटाएगी। मीना, नीलम के घर की तरफ हाथ में कुछ लेकर जा रही है।
मीना- (खट खट)"नीलम दीदी.......२"
अंदर से आवाज आती है- "कौन है?"
मीना- चाची, मैं हूँ मीना।
दरवाजा खुलता है.........मीना चाची को नमस्ते करती है।
चाची- आओ मीना आओ, ले आईं।
मीना- हाँ चाची, नीलम दीदी कहाँ हैं?
चाची- वो तो बहार नल से पानी भरने गयी है।
नीलम के पिताजी (चाचाजी)- कौन आया है नीलम की माँ?
मीना- नमस्ते सूरज चाचा, ये लीजिये अपका कुर्ता।
चाचा - अरे...तुम ये कहाँ से ले आई मीना।
मीना- दर्जी काका से। अपनी साइकिल पे जाके।
चाचा- शब्बाश बेटी! अरे ये क्या? इस कुर्ते में न तो बटन हैं और न ही ठीक से सिलाई हुई है।
मीना- हाँ चाचा, दर्जी काका कह रहे थे, की महँगाई बढ़ने की वजह से वो आजकल कपड़ो में कम धागा लगा रहे हैं।
चाचा- अरे भाई, इसका मतलब ये तो नहीं न कि वो आधे अधूरे कपडे सिलेगा। ये देखो, कैसे पहनू ये आधा सिला हुआ कुर्ता।
मीना- चाचा, दर्जी काका तो कह रहे थे की उनके हिसाब से ये कुर्ता बिलकुल ठीक सिला है। और,.....
चाचा- अरे भाई, उसके कहने से क्या होता है?बुरा तो पहनने और देखने वाले को लगेगा न चाची- गुस्सा क्यों होते हो, ..... पैसे भी तो कम लिए हैं दर्जी ने।चाचा- ये सिलवाने की भी क्या जरूरत थी,ऐसी ही ओढ़ लेता कपड़ा, चद्दर की तरह। पूरे पैसे बच जाते। ह्ह्ह्हजा रहा हूँ मैं।
चाची (हँसते हुए)- लो, ये तो नाराज़ हो कर चले गयें। चलो पहली तरकीब तो काम कर गई।
मीना- चाची मैं चलती हूँ, कल वैसा ही करना जैसा हमने सोच रखा है।
और नीलम दीदी से भी कहना की वो जोर जोर से रोएँ। मैं कल फिर आऊँगी।
चाची- हाँ हाँ, ठीक है मीना।
.....और अगले दिन.......
सूरज चाचा गुस्से में खेत से घर लौट रहे हैं। वो बार बार अपना पेट पकड़ रहे हैं।
चाचा- नीलम की माँ.....ओ .....२
चाची- आ गए आप। मैं पानी ले कर आती हूँ।
चाचा- रहने दे पानी। ये बता दोपहर के खाने में रोटी क्यों नहीं रखी थी।
चाची- लो इतनी सारी सब्जी तो दी थी।
चाचा- सब्जी खाने से कहीं पेट भरता है, क्या रोटी की जरूरत नहीं होती।
ह्ह्ह्ह्ह्..........
जैसे कुर्ते के साथ पयजामा पहनना जरूरी है, वैसे ही सब्जी के साथ रोटी भी जरूरी है।
चाची कहती है की वो अगली बार से ध्यान रखेंगी।
नीलम के रोने की आवाज आती है.......माँ-२
चाचा- अरे बेटी, क्या हुआ?
नीलम- मैं साइकिल से गिर गयी बाबा।
चाचा- लेकिन, तुझसे कहा किसने था साइकिल चलाने के लिए।
नीलम बताती है की साइकिल के ब्रेक न लगा पाने के कारण वो गिर गयी।
चाचा - यही तो बात है।
नीलम- लेकिन बाबा, मैं साइकिल पर बैठ कर उसके पेडल तो मार ही लेती हूँ।
चाचा- मगर.....ब्रेक मारनी तो नहीं सीखी न। किसी भी चीज़ का आधा अधूरा ज्ञान हो तो वो ऐसे ही नुकसान करता है।
.......अगली बार से ध्यान रखना।
नीलम वादा करती है कि वो ऐसा ही करेगी। वो अपने पिता से पूछती है कि आधा अधूरा ज्ञान,खतरनाक क्यों होता है।
सूरज चाचा- तुमने वो कहावत नहीं सुनी की - "नीम हकीम खतरा-ऐ-जान" ज्ञान हो तो पूरा हो।
नीलम- फिर आपने मेरी पढ़ाई क्यों छुड़वा दी बाबा। मेरा ज्ञान भी तो अधूरा रह जाएगा।
तभी वहां मीना आती है और सबको नमस्ते करती है। मिट्ठू भी साथ ही है। सूरज चाचा उसे अंदर बुलाते हैं।
नीलम फिर से अपना सवाल दोहराती है।
चाचा- सात क्लास पढ़ तो ली, और कितना ज्ञान चाहिए तुझे। जितना पढ़ लिया उतना बहुत है।
मीना- चाचा, जब मैंने दर्जी से आपके कुर्ते के बारे में बात की और कहा की उसमे सिलाई ठीक नहीं की है तो पता है की वो क्या बोला? .... वो बोला की जितना धागा लगाया है, उतना ही बहुत है।
चाची बीच में बोलती हैं की कई बार जितना है उतना ही बहुत नहीं होता। जैसे खाना बहुत सारी सब्जी के होते हुए भी बिना रोटियों के उनकी भूख नहीं मिटा पाया।
चाचा- लेकिन नीलम की माँ, नीलम स्कूल जायेगी तो घर और खेत के काम कौन...........
चाची- पहले भी तो नीलम स्कूल से लौट कर सब काम में हाथ बटाती थी। अब भी वैसा ही करेगी।......क्यों नीलम?
नीलम- हँसते हुए.........हाँ माँ|
चाचा- देखो तो स्कूल का नाम सुनते ही सब भूल गयी, के अभी ये साइकिल से गिरी है।
नीलम हँसते हुए कहती है कि उसने तो साईकल चलाई ही नहीं।चाचा चोंक कर पूछते हैं की इस सब का क्या मतलब।
चाची- हाँ नीलम के बाबा, हम तो बस आपको हंसी हंसी मेँ एक छोटी सी बात समझाना चाहते थे। इसीलिए, मीना, नीलम और मैंने मिलके एक छोटा सा ...........
नीलम की माँ.........तुमने आज मेरी आँखें खोल दी। सच मे,नीलम की माँ, मेरा नीलम को स्कूल न भेजना का फैसला बहुत गलत था। जितना है बहुत है से सचमुच काम नहीं बनता। जैसे हर नया दिन हमे एक नयी चीज़ सिखलाता है, वैसे ही हर क्लास बच्चे को एक नया सबक सिखलाती है।
.....मेरी बेटी कल से स्कूल जायेगी।
मिट्ठू सुर में सुर मिलाता है
नीलम- बाबा आप कितने अच्छे हैं
चाचा नीलम से वादा लेते हैं, की वो अपनी पढ़ाई पूरी करके अपनी माँ जैसी समझदार बनेगी। नीलम वादा करती है,,,,,,,,,,सब हँसते हैं
चाची- चलो मैं खाना लाती हूँ।
.......ये क्या नीलम की माँ सुर रोटियां, सब्जी कहाँ हैं ।
मीना- क्या चाचा कल इतनी सारी सब्जी खाई तो थी।
सब हँस पड़ते हैं।
आज का गाना -
खेलो कूदो साथ में है पढ़ना भी जरूरी
स्कूल के बिना तो है ज़िन्दगी अधूरी।
................................................
आज का खेल- "कड़ियाँ जोड़ पहेली तोड़"
1. पेट बड़ा और मुँह है छोटा,
2. सर पे उसके रखा है लोटा,
3. तन मन शीतल कर देता है, गर्मी में हर जगह ये होता
उत्तर- घड़ा
आज की कहानी का सन्देश-
“अधूरा ज्ञान, बहुत नुकसान,
नीम हकीम खतरे की जान”
Thursday, December 22, 2016
एपिसोड-50 🍮 ‘बालूशाही’
मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण
एपिसोड- 50
आज की कहानी का शीर्षक- “बालूशाही ”
स्कूल की छुट्टी होने के बाद मीना अपने भाई राजू और नटखट तोते मिट्ठू के साथ घर जा रही है। मगर आज घर पर, मीना से कोई मिलने आया है।
घर पहुँच कर.................
मीना- माँ हम आ गए। बहुत जोर से भूख लगी है, जल्दी से खाना दे दो। मैं हाथ धो कर आती हूँ।
माँ- अरे! वो सब बाद में कर लेना, पहले देख तो लो कि तुमसे मिलने कौन आया है।
राज माँ से पूछता है कि कौन आया है?
"मैं आया हूँ राजू " , मोहन भईया की आवाज सुनाई दी|
सब एक साथ- “ मोहन भैया”
मीना- आप कब आये मोहन भैया?
मोहन- बस थोड़ी देर पहले। मुझे शहर में नौकरी मिल गयी है, मीना। इसलिए सोचा कि शहर जाने से पहले तुम दोनों से मिलता जाऊँ।
भैया राजू के लिए पतंग - डोर तथा मीना के लिए पंचतंत्र की कहानियों की किताब लाये हैं।
मीना , मोहन भैया का धन्यवाद अदा करती है। ..........मिट्ठू साथ में अपनी तान मिलाता है।
मीना मोहन को बताती है की उसकी बहनजी भी पंचतंत्र की कहानियों की बहुत बातें करती हैँ। कुछ कहानियाँ तो उन्होंने सुनाई भी हैं । जैसे....
मीना की माँ ने आवाज लगाई - "मीना जा जल्दी से लालाजी की दूकान से बर्फी और कलाकंद ले आ। मोहन की नौकरी लगी है, मुँह तो मीठा करवाना चाहिए न । ये ले पैसे। अच्छा सुन........१/२ किलो बर्फी और २५० ग्राम कलाकंद ले कर आना।
मीना- ठीक है माँ।
तो मीना झटपट पहुँच गयी लालाजी की दुकान पर। लालाजी दूकान पर नहीं हैं, उनके सब से छोटे बेटे बालुशाही ने दुकान संभाल रखी है। वो मीना की उम्र का है और आजकल दुकान पर मदद करता है।
पर ये क्या....
मीना से पहले दुकान पर दीपू और उसके शरारती दोस्त पहुँच जाते हैं। और......
दीपू (बालूशाही से)- जरा २ kg लड्डू, १० गुलाब जामुन और ४ प्लेट रसमलाई और ...हाँ ....१/२kg जलेबी भी बाँध दे।.......
अरे जल्दी कर यार।
‘हाँ….. हाँ’बालूशाही ने कहा, ‘अभी लो दीपू .......|’
दीपू- वो चार समोसे भी डाल दे। ओफ़्फ़ ओ.....इतनी देर लगाएगा तो रहने दे।
बालूशाही- नहीं नहीं.... हो गया। ये लो....
दीपू - अच्छा ले, पकड़ पैसे
बालूशाही- एक..दो...तीन...
दीपू - अरे बालूशाही तू भी न,
१ kg लड्डू ₹ ३०/-
२ kg.....३०+२= ₹ ३२ के
१० गुलाब जामुन ₹१५ के बाकी समोसे कलाकंद सब मिला कर हो गए ₹ ४०/-
ये ले चालीस रूपए.......ठीक है ना।
चल यार ये तीन रूपए और रख ले, तू भी क्या याद करेगा। ......
अपने दोस्तों से...... चलो भाई...
(और वह बालूशाही को मुर्ख बना कर चला जाता है)
..........क्योंकि बालूशाही जल्दी से सही हिसाब नहीं लगा पाता है इसीलिए दीपू ने उसके साथ ये बेइमानी की। परंतु मीना ने दूर से ही यह सब देख रही थी। जैसे ही मीना दुकान पर पहुंची वैसे ही लालाजी भी पहुँच गए और बालूशाही को इतना सामान बेचने क लिए शब्बाशी देते हुए पूछते हैं की कितने रूपए लिए।
बालूशाही बताता है , ‘43 रूपए’
43 रूपए सुन कर लालाजी चोंक जाते है और पूछते हैं कि कितना सामान बेच दिया था।
बालुशाही सब बताता है.....
लालाजी उसे डांटते हुए पूछते हैं कि क्या इतने सारे सामान के सिर्फ 43रूपए बनते हैं ।
लालाजी- लुटवादे सारी दुकान, बेटा....... दोहराते हुए
रोज़ जमा घटा सिखाता हूँ ......फिर भी.....क्या दिमाग घास चरने चला जाता है तेरा.............
(मीना को देख कर)
लालाजी- अरे मीना बेटी,
मीना- अ ऑ...... लालाजी, १/२ kg बर्फी और २५०gm कलाकंद देना।
लालाजी बालूशाही को हिसाब सिखाते हुए, “अब देख 1 kg बर्फी 80 की.......तो 1/2 kg कितने की?”
‘40 की।‘ मीना झट से बोली|
लालाजी- सुना बालूशाही ....... ये है होशियार लड़की।........और 1 kg कलाकंद 100रूपए तो 250gm कितने का हुआ ? .......बोल......
बालूशाही- अ..अ... 1 kg में कितने gm होते हैं बापू?
लालाजी- सत्यनाश! अरे कितनी बार तो बताया तुझे.......1000 ....एक हजार gm होते हैं।
मीना हिसाब लगा कर बताते हुए- कलाकंद 25 और बर्फी 40.....ये लो 65 रूपए।
लालाजी (चकित हो कर)- मीना तू तो बड़ा जल्दी हिसाब कर देती है।
मीना- स्कूल में बहनजी सिखाती हैं हमे लालाजी। अच्छा अब मैं चलती हूँ।
एक दिन लालाजी किसी काम से दुसरे गाँव जाते हैं। मीना, राजू और मिट्ठू स्कूल से घर लौटते हुए देखते हैं की दीपू और उसके शरारती दोस्त फिर से बालूशाही के पास दुकान पर खड़े हैं।
दीपू- बालूशाही.... आज वो पतीसा, चमचम और बर्फी बाँध दे।
बालूशाही- कितने कितने दूं दीपू ?
दीपू- 1/2........1/2 kg सब दे दे। पर जल्दी कर भाई,...........बहुत भूख लगी है। और ,.....सुन वो थोड़े से पेड़े भी डाल दे।
मीना, मिट्ठू और राजू क साथ, दीपू और उसके दोस्तों के पीछे आकर खड़ी हो जाती है, ताकी दीपू कोई बेईमानी न कर सके।
बालूशाही- ये लो, मैंने सब बाँध दिया है।
दीपू- अरे वाह! बालूशाही, आज तो तूने फटाफट ही कर दिया। चल पैसे बता।
बालूशाही- 1/2 kg चमचम, 1/2 kg बर्फी,........
1kg बापू ने बताया था 150 की.......ओ....
दीपू- ओह ओह बालूशाही.........50 रूपए की बर्फी, 20 रूपए का पतीसा और 20 रूपए की चमचम....मतलब 60 रूपए.....और हाँ .......पेड़े भी तो हैं......तेरे साथ बेईमानी थोड़ी करेंगे। चल ...... 5 रूपए उनके.......ये ले 65 रूपए।
“कहाँ ठीक है दीपू? रुक, मैं तेरा साथ हिसाब कर देती हूँ।, बीच में मीना बोल पड़ती है
दीपू- तू क्या करेगी मीना? हिसाब तो हो गया।
अपने दोस्तो से.....चलो भई चलो, पैसे दिए......माल लिया ....बात खत्म
मीना- नहीं दीपू, बहनजी कहती हैं कि जितने का सामान लो उतने पैसे ही देने चाहिये।
तुमने बर्फी ली .....देखो यहाँ लिखा है वो 150 रूपए kg है, तो 1/2 kg हुई .....राजू बोलता है.....75 रूपए की......पतिसा 120 रूपए kg, तो 1/2 kg हुआ, .....60 रूपए का,.......और चमचम है 70 रूपए kg तो वो आधा किलो हुई,........
राजू फिर से बीच में बोलता है ....35 रूपए की........
मीना- हाँ राजू, ये सब मिला कर हुआ 170 रूपए और पेडे के पैसे हुए 25 रूपए।
तो दीपू तुम्हे बालूशाही को देने हैं 195 रूपए। और तुमने दिए 65 रूपए,
चलो, ..... बाकी के 130 रूपए दो।
लालाजी बच्चों की सारी बाते सुन लेते हैं । वो, मीना को शब्बाशी देते।
दीपू- ठीक है, .......२
ये ले, ......२........पैसे।
दीपू और उसके दोस्त वहाँ से भागने लगते हैं
लालाजी- अरे, भागते कहाँ हो बदमाशो,....... रुको......२
भई, .....मीना बेटी,...
..तूने तो कमाल ही कर दिया। क्या फटाफट हिसाब करती है।
मीना- ये सब तो कुछ भी नहीं। बहनजी तो हमे और बड़ा बड़ा हिसाब भी सिखाती हैं। लालाजी,....कल हमे बहनजी 12 का पहाड़ा करवाने वालीं हैं। आपको तो पता ही होगा लालाजी की 12×7 कितना होता है?
पर लालाजी को इसका उत्तर बहुत देर तक जमा घटा करके पता चला। उस रात बहुत देर तक लाला को नींद नहीं आई। उन्हें समझ में आ गया था, की घर पर बालूशाही को हिसाब किताब सिखाने से कुछ नहीं होने वाला। मीना ठीक कहती है की स्कूल की पढ़ाई की बात ही कुछ और है। वहाँ बच्चों क साथ, खेल खेल में बच्चे इतना कुछ सीख जाते हैं ,......जो कोई भी माँ बाप, घर पर अपने बच्चों को नहीं सीखा सकते। स्कूल में पढ़ने का एक अलग ही सलीका है, जो की बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए, बेहद जरूरी है।
और अगली सुबह......
लालाजी बहनजी से बात करके बालूशाही का नाम स्कूल में लिखवा देते हैं।
मीना और राजू, बहुत खुश हो जाते हैं
लालाजी मानते हैं कि बालुशाही को स्कूल से निकाल कर उन्होंने बहुत बड़ी गलती की थी। अब उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया था। अब वो उसे रोज़ स्कूल भेज कर, मीना जैसा तेज़ और समझदार बनाना चाहते थे।
मीना लालाजी से कहती है , की उसकी बहनजी का कहना है कि स्कूल में हम जीवन के लिए सारी जरूरी चीजे पढ़ाई के साथ-२ सीखते हैं।
इस तरह से बालूशाही, फिर से स्कूल आने लगा।
आज का गाना -
अजब अजब है गजब गजब
गजब गजब है अजब अजब........
हर बात होती है अजब और नतीजा गजब गजब
..........................................
आज का खेल- 'गोल घुमा के बोल'
Ä(हरा रंग)
बीज, ट्रैक्टर, पानी, हल, बैल।
आज की कहानी का सन्देश-
“सही शिक्षा और सही ज्ञान
मिलता सिर्फ विद्यालय के द्वार,
रोज़ जाओगे विद्यालय सब
सीख पाओगे हिसाब तब|”
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