Saturday, December 10, 2016

एपिसोड-25 📢 ‘हमारी सुनो’ (यद्यपि चेहल्लुम के अवकाश में संशोधन के कारण आज विद्यालय बन्द था। परन्तु मीना तो विद्यालय गयी थी न)

 मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण
                                    
एपिसोड-25
 
                       कहानी का शीर्षक- ‘हमारी सुनो
                  मीना अपनी क्लास में है|
बहिन जी- बच्चों अब करते हैं अगला सवाल........अगर एक व्यक्ति चार घण्टे में दो मील चलता है तो वो अठ्ठाईस घण्टे में कितने मील.....(कि तभी शहनाई गूँजने की आवाज आने लगती है|) अरे ये.....शोर कैसा?
“बहिन जी, लगता है आज समुदाय भवन में किसी की शादी है|” दीपू ने कहा|
बहिन जी- इतने शोर में हम पढ़ेंगे कैसे?
“.....क्यों न हम खिड़कियाँ और दरवाजे बंद कर दें, ऐसा करने से लाउडस्पीकर का शोर कम हो जायेगा|” मीना ने सुझाव दिया|
       बहिन जी ने क्लास की सभी खिड़कियाँ और दरवाजे बंद कर दिये| ऐसा करने से लाउडस्पीकर का शोर तो कम हो गया लेकिन सभी बच्चों को गर्मी लगने लगी|.....बहिन जी ने दरवाजे, खिड़कियाँ खोल दिये|......खिड़कियाँ खोलते ही लाउडस्पीकर का शोर तो फिर से आने लगा|
“बहिन जी, क्या ये समुदाय भवन बंद नहीं कराया जा सकता? इसके कारण अक्सर हमें पढ़नें में परेशानी होती है|” दीपू बोला|
बहिन जी- ......पंचों का कहना है कि गाँव में कम से कम एक जगह तो ऐसी होनी चाहिए जहाँ शादी-विवाह या अन्य समारोह का आयोजन किया जा सके|
“बहिन जी, क्या पंचायत से बात करके समुदाय भवन किसी और जगह नहीं बनाया जा सकता?” मीना ने पूँछा|
“मीना...मैं अगले हफ्ते होने वाली स्कूल प्रबन्धन समिति की मीटिंग में ये बात रखूँगी|” बहन जी ने जबाब दिया|
         और फिर आधी छुट्टी के समय जब मीना,दीपू स्कूल के मैदान में कैच-कैच खेल रहे थे तो दीपू कैच नहीं कर पाया और गेंद जाके गिरी दाल से भरे पतीले में....
“अरे, ये तुमने क्या किया? कहीं और जाके नहीं खेल सकते|” प्रश्न दागा गया|
दीपू- ये हमारे स्कूल का मैदान है| हम तो यहीं खेलेंगे| वैसे.... आप कौन हैं और यहाँ क्या कर रहे हैं?
“हम हैं मशहूर हलवाई कल्लूमल” जबाब मिला, ‘आज समुदाय भवन में जो शादी है उसके खाने-पीने का सारा इंतजाम हमी कर रहे हैं| हाँ...नहीं तो|
“शादी समुदाय भवन में है तो आप खाना भी वहीँ जाकर बनाइये न |” दीपू ने कहा|
कल्लूमल हलवाई- अरे बेटा...समुदाय भवन में जगह होती तो हम वहीँ जाके खाना नहीं बनाते| हाँ...नहीं तो|
दीपू- ...लेकिन मैदान हमारे स्कूल का है|
कल्लूमल हलवाई- ये मैदान जितना तुम्हारे स्कूल का है उतना ही समुदाय भवन का भी है|
             और जब मीना, दीपू और मोनू गेंद धोने के लिए नल के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां कुछ लोग बड़े-बड़े वर्तन धो रहे हैं|
मीना- दीपू.....ये लोग कौन हैं?
दीपू- ......सुनिए...आप लोग......
“हम कल्लूमल हलवाई के यहाँ काम करते हैं.....वो क्या है न समुदाय भवन में पानी नहीं था इसीलिए हम वर्तन धोने यहाँ आ गए” जबाब मिला|
दीपू- मीना.....मोनू.....इस समुदाय भवन का कुछ तो करना होगा|
मोनू-....लेकिन हम कर ही क्या सकते हैं| समुदाय भवन न तो बंद किया जा सकता है, न ही कहीं और बनाया जा सकता है|
“अगर स्कूल और समुदाय भवन के बीच एक पक्की दीवार बन जाए तो” मीना ने सुझाव दिया|
दीपू- तुम्हारा सुझाव तो अच्छा है मीना....लेकिन समुदाय भवन में बजने वाले लाउडस्पीकर का क्या करें?
“हम उनसे निवेदन कर सकते हैं कि वे लाउडस्पीकर धीमी आवाज़ में बजायें|
          ‘धीमी आवाज़ में बजायें,ज्यादा शोर न मचाएं|’ मिठ्ठू चहका|
“मीना...दीपू...हम समुदाय भवन वालों से ये भी कह सकते हैं कि अगर उन्हें पानी की जरुरत हो तो वो स्कूल का नल इस्तेमाल करने के बजाय सड़क पार वाले हैण्ड पम्प से पानी ले सकते हैं|” मोनू ने सुझाव दिया|
         मीना,दीपू और मोनू ने अपने-अपने सुझाव एक कागज पे लिख लिये, फिर उन्होंने बहिन जी के पास जाकर वो सुझाव बताये|
बहिन जी ने उनसे कहा, “ बच्चों तुम्हारे सुझाव बहुत अच्छे हैं| अगले हफ्ते स्कूल प्रबन्धन समिति की मीटिंग है| तुम तीनों भी उस मीटिंग में चलना और ये सुझाव सबके सामने रखना|”
      मीना,दीपू और मोनू बहिन जी की बात सुनके खुश हो गए| और फिर अगले हफ्ते स्कूल प्रबन्धन समिति की मीटिंग में......
बहिन जी- प्रिंसिपल साहिबा, सरपंच जी...आज की मीटिंग में, मैं सबका ध्यान एक ऐसे विषय की और ले जाना चाहती हूँ जो काफी समय से हमारे स्कूल के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है|
‘बहिन जी, आप किस विषय की बात कर रहीं हैं?’ सरपंच जी ने पूंछा|
बहिन जी- मैं समुदाय भवन की बात कर रही हूँ सरपंच जी|
प्रिंसिपल साहिबा- बहिन जी ठीक कह रहीं हैं सरपंच जी, समुदाय भवन में होने वाली शादियाँ....समारोह...आदि के कारण हमें बहुत परेशानी होती है|
सरपंच जी-प्रिंसिपल साहिबा...मैं आपकी बात समझ रहा हूँ लेकिन क्या करें? गाँव में कोई और जगह है ही नहीं| अगर होती तो पंचायत समुदाय भवन को कब का वहाँ बना चुकी होती|
‘हुंह...’ प्रिसिपल साहिबा ने सहमति जताई, ऐसे तो इस समस्या का कोई हल नहीं निकलेगा|
बहिन जी- प्रिंसिपल साहिबा, मीना, दीपू और मोनू के पास कुछ सुझाव हैं| अगर आप कहें तो.....|
प्रिंसिपल साहिबा- हाँ..हाँ...बहिन जी, बिल्कुल|
बहिन जी मीना को इशारा करती हैं|
मीना- प्रिंसिपल साहिबा, दीपू ..मोनू और मैंने अपने कुछ सुझाव इस कागज पे लिखे हैं| जिसमे शायद समस्या का हल निकल सकता है| हमने इस समस्या को हल करने के लिए तीन चीजें सोची हैं....
*      अगर हम समुदाय भवन और स्कूल के बीच एक पक्की दीवार बना दें तो|
प्रिंसिपल साहिबा-...लेकिन दीवार बनवाने के लिए काफी खर्चा करना पड़ेगा, और अभी स्कूल के पास पर्याप्त फंड नहीं है|
“प्रिंसिपल साहिबा, आप चिंता मत कीजिये ......मैं पंचों से इस बारे में बात करूँगा| अगर पंचायत के फंड में पर्याप्त धन हुआ तो दीवार बनवाने की जिम्मेदारी मेरी|” सरपंच जी बोले, ‘मीना बेटी...क्या है तुम्हारा दूसरा सुझाव?’
*      “.....समुदाय भवन वाले, स्कूल का नल इस्तेमाल करने के बजाय सड़क पार वाले हैंडपंप  का पानी लें|” दीपू ने अपना सुझाव दिया|
सरपंच जी- लालाजी...आप क्या कहते हैं?
लालाजी- मोनू का सुझाव तो बहुत अच्छा है.....लेकिन उसके लिए हमें समुदाय भवन की रसोई दूसरी तरफ....मेरा मतलब सडक वाली तरफ ले जानी पड़ेगी|
“वो तो हो जायेगा|” सरपंच जी ने कहा, ‘मीना तुम्हारा अगला सुझाव क्या है?’
*      दीपू- सरपंच जी, लाउडस्पीकर के शोर की वजह से हमें पढ़ने-लिखने में बहुत मुश्किल होतीं है|
लालाजी- दीपू बेटा ......शादी-ब्याह में लाउडस्पीकर तो बजेगा ही और जब लाउडस्पीकर बजेगा तो शोर भी होगा|
मीना बोली- लालाजी, हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि समुदाय भवन में लाउडस्पीकर स्कूल की छुट्टी के बाद बजे|
प्रिंसिपल साहिबा-हुंह...ये तो हो सकता है..नहीं सरपंच जी|
सरपंच जी- जी प्रिंसिपल साहिबा, पंचों से बात करके इतना तो किया ही जा सकता है|
प्रिंसिपल साहिबा- मीना, दीपू ...मोनू, मुझे जितनी खुशी तुम्हारी बुद्धिमानी देखा कर हुई उतनी ही ज्यादा खुशी इस बात की हुई कि तुम तीनों ने बड़ी सूझ-बूझ से समस्या को समझा, उसे सुलझाने में अलग-अलग तरीकों के बारे में बहुत ही बढ़िया तरीके से अपने निष्कर्ष पर पहुँचे और अपने सुझाव हम सबके सामने रखे| शाबाश!
बहिन जी- .....तुम सबने बहुत शालीनता और विनम्रता से हमसे अपनी बात मनवाई|
“बात मनवाई, मिठ्ठू ने ताली बजाई” मिठ्ठू चहका|
           कुछ दिनों बाद बहिन जी ने सब बच्चों को बताया कि स्कूल प्रबन्धन समिति के सदस्यों ने मीना,मोनू और दीपू के सुझाव मान लिए हैं| और जल्द ही उन सुझावों को कार्यान्वित भी किया जायेगा|
                                            
मीना, मिठ्ठू की कविता-
  “कोई भी मुश्किल हो तुम उसके हर पहलू को सोचो,
बातचीत करके फिर किसी नतीजे पे तुम पहुँचो|
                                    
आज का गीत-
          तुम   सुनो   हमारी   हम सुने   तुम्हारी 
          इक दूजे की बात समझना यही है समझदारी|-२
इक दूजे के दिल की समझो इक दूजे को जानो
कहे चाहे दोस्त  बात जो  उसको तुम पहचानो|
         बात-बात में बात है बनती सही कहावत प्यारी
         इक दूजे की बात समझना यही है समझदारी|
अपनी इक मुस्कान से ही बस बिगड़ी बात बनालो
कभी जो कोई रूठे  तो तुम हँस के उसे मन लो |
         मीठे-मीठे झगड़ों से हो पक्की और भी यारी
         इक दूजे की बात समझना यही है समझदारी|
तुम   सुनो   हमारी   हम सुने  तुम्हारी
इक दूजे की बात समझना यही है समझदारी|
                                                 
आज का खेल- ‘ अक्षरों की अन्त्याक्षरी’
Ø  शहद
       ‘श’- शीशी (शीशा दिखाना)
       ‘ह’-  हाथी (हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और)
       ‘द’-  दूध (दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता हैं)


आज की कहानी का सन्देश-  “ समस्या चाहे जैसी भी हो उस पर विचार करने से, उसे सोचने समझाने से और बातचीत करने से उसका हल निकल ही आता है, लेकिन बातचीत ढंग से और कुशलतापूर्वक की जाए तो|

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